बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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तुलनात्मक सरकार और राजनीति : यू के, यू एस ए, स्विटजरलैण्ड, चीन
प्रश्न- ग्रेट ब्रिटेन की सम्प्रभुता की विवेचना कीजिए तथा इस प्रभुसत्ता की सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
'ब्रिटेन की संसद संप्रभु है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ब्रिटिश व्यवस्थापिका संसद के पक्ष में तर्क दीजिए।
2. संसदीय प्रभुसत्ता की प्रमुख सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
ब्रिटिश व्यवस्थापिका संसद
ब्रिटिश संसद की प्रभुसत्ता - ब्रिटेन में राजा सहित संसद का सिद्धान्त मान्य है और इसे ही सम्प्रभु कहा जाता है वैधानिक दृष्टि से इसकी यह प्रमुख विशेषता है। ब्रिटिश संसद को कानून बनाने की असीमित शक्तियाँ प्राप्त हैं और इसी असीमित शक्ति को ही संसद की सम्प्रभुता कहा जाता है। यह कानून बनाने उनकी पुष्टि करने, विस्तार करने, सीमित करने, संशोधित करने व उन्हें समाप्त करने का संप्रभु व अनियंत्रित अधिकार रखती है चाहे ये कानून धार्मिक, लौकिक, दीवानी, फौजदारी, सैनिक एवं समुद्री किसी प्रकार के हों। इस सम्बन्ध में सर एडवर्ड कोफ ने लिखा है कि- "संसद की शक्ति व अधिकार क्षेत्र इतना सर्वोपरि और पूर्ण है कि इसकी कोई सीमायें बांधी नहीं जा सकती।'
डी. लोल्मे के अनुसार - 'ब्रिटिश पार्लियामेन्ट एक स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री बनाने के अतिरिक्त सब कुछ कर सकती है।'
डायसी के अनुसार - "ब्रिटिश संसद के पास एक सर्वोच्च विधायी प्राधिकार संप्रभु शक्ति है जिसे आस्टिन एवं अन्य न्यायशास्त्रियों के अनुसार प्रत्येक सभ्य राष्ट्र में अस्तित्व में होना चाहिए।'
संसद की सम्प्रभुता के सिद्धान्त का समर्थन आँग, टाकविले सर मैथ्यू हैंस विचारकों ने किया है। ब्रिटिश संसद की सम्प्रभुता के पक्ष में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जाते हैं-
1. ब्रिटिश संसद का विधि निर्माण का क्षेत्राधिकार असीमित है।
2. ब्रिटेन की संसद को विधि निर्माण के क्षेत्र में पूर्णाधिकार प्राप्त है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर सहमति देने के लिए क्राउन बाध्य है। ऐसी परम्परा वहाँ पर सुव्यवस्थित हो चुका है।
3. ब्रिटिश संविधान में कोई ऐसा सीमा चिन्ह नहीं है जिससे यह तय किया जा सके कि कौन सा कानून मौलिक है कौन सा नहीं।
4. संसद दोनों सदनों के साधारण बहुमत से ही किसी भी संवैधानिक परिवर्तन को करने में सक्षम है।
5. संसद किसी भी कानून को कभी भी संशोधित पूर्ण परिवर्तित व समाप्त कर सकती है।
6. किसी न्यायालय व व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह संसद द्वारा निर्मित कानून को अस्वीकार कर सकें।
7. ब्रिटेन में भारत व अमेरिका की तरह न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था न होने के कारण कानून निर्माण के क्षेत्र में असीमित शक्ति प्राप्त है।
संसदीय प्रभुसत्ता पर सीमायें
यह सत्य है कि ब्रिटिश संसद को कानून निर्माण में असीमित शक्तियाँ प्राप्त है परन्तु व्यवहार में उस पर अनेकों प्रतिबन्ध है जो निम्नलिखित हैं-
1. आन्तरिक सीमा - इससे तात्पर्य संसद के आंतरिक चरित्र से है। संसद में जो प्रतिनिधि होते हैं। वे ब्रिटिश समाज के विविध वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं अतः कोई भी नियम ऐसा नहीं है जो समाज विरोधी हो। वस्तुतः वास्तविक सम्प्रभु तो प्रजातंत्र में मतदाता होते हैं।
2. बाह्य सीमा - इससे तात्पर्यं जनता की जागरूकता से है और ब्रिटेन में जनता इतनी जागरूक है कि वह संसद के मनमाने कानून को वह स्वीकार नहीं करती। लोकसदन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है और इसीलिए जनता के मतों के विरुद्ध किसी कानून के निर्माण का प्रयास नहीं करती है। इसके अतिरिक्त भी सम्प्रभुता पर कुछ सीमायें हैं जो निम्न हैं-
1. अभिसमय - ब्रिटेन में अभिसमयों का बहुत अधिक महत्व है और इनका पालन जनता के द्वारा कानून की ही तरह किया जाता है और संसद के द्वारा उन अभिसमयों के विरुद्ध कानून का निर्माण नहीं किया जा सकता है। अभिसमयों के पीछे जनमत की शक्ति होती है और संसद इसकी अवहेलना नहीं कर सकती और यदि वह ऐसा करती है तो जनता संसद के विरुद्ध हो जायेगी।
2. विधि का शासन - विधि का शासन ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषता है और जो विधि के समक्ष समता के सिद्धान्त पर आधारित है और यदि ब्रिटिश संसद विधि के शासन का उल्लंघन करती है तो गंभीर जन प्रक्रिया का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त विधि के शासन को संसद द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
3. प्रदत्त व्यवस्थापन - संसद के कानून निर्माण सम्बन्धी कार्य बहुत अधिक होने के कारण संसद किसी विधायन की सिर्फ मोटी रूप रेखा ही पारित करती है। इसके अंतर्गत नियम व उपनियम बनाने का कार्य कार्यपालिका करती है और इस प्रकार विद्यायन सम्बन्धी बहुत से कार्य कार्यपालिका को हस्तान्तरित हो गये हैं। किन्तु यह सब संसद के व्यवस्थापन व अधिनियम के अनुरूप होता है। परन्तु फिर भी ऐसे बहुत से नियम व उपनियम होते हैं जिन पर संसद का कोई नियंत्रण नहीं होता और संसद की प्रभुसत्ता सीमित हो जाती है।
4. नैतिक नियम - संसद वैधानिक से तो सम्प्रभु हो सकती है परन्तु वह कोई ऐसा नियम नहीं बनाती जो नैतिक नियमों की अवहेलना या उनके विरुद्ध हो। इस प्रकार इन नैतिक बन्धनों से भी उसकी प्रभुसत्ता प्रभावित होती है।
5. डोमीनियम देशों की स्थिति - ब्रिटेन में अधिराज्यों की स्थिति अब परिवर्तित हो चुकी है क्योंकि वे अब पूर्ण संप्रभु है। 1931 के वेस्ट मिन्सटर परिनियम से संसद की प्रभुसत्ता सीमित हो गई है क्योंकि इसमें यह उल्लेख है कि 1931 के बाद ब्रिटिश संसद तब तक अधिराज्यों के लिए कानून नहीं बनायेगी जब तक इनकी संसद इसके लिए प्रार्थना न करे।
6. अंतर्राष्ट्रीय कानून व संगठन - अंतर्राष्ट्रीय कानून के द्वारा भी ब्रिटिश संसद की प्रभुसत्ता सीमित हो जाती है क्योंकि ब्रिटेन में वैस्ट रैण्ड गोल्ड माइनिं कंपनी बनाम सम्राट नामक विवाद में यह निर्णय लिया गया कि संसद अंतर्राष्ट्रीय कानून के विरुद्ध कोई नियम नहीं बनायेगी और इन सबसे ब्रिटेन में अंतर्राष्ट्रीय कानून को राष्ट्रीय कानून का ही एक भाग माना जाता है।
अतः इस प्रकार ब्रिटेन में संसदीय प्रभुसत्ता पर कई सीमायें हैं। संसदीय प्रभुसत्ता का अर्थ कानून निर्माण में स्वेच्छाचारिता नहीं है वरन् संसद द्वारा बनाये कानूनों पर कोई प्रतिबन्ध न हो वह कैसी भी विधि बनाये उसे ब्रिटेन के किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है इसीलिए ब्रिटेन की संसद सम्प्रभु है।
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- प्रश्न- स्विट्जरलैंड की कार्यपालिका के बारे में बताइये।
- प्रश्न- स्विस व्यवस्थापिका के बारे में बताइये।